शनिवार, 1 मार्च 2008

काश! ये चुनावी भूत हमेशा सवार रहे।

यूपीए सरकार के इस पाँचवें बजट पर रंग चाहे चुनाव का ही चढा हो पर इसका लाभ तो नि:संदेह जनता को मिला है। लोकलुभावन बजट का पासा सियासी चाल के तहत फेंका गया है, जिसके कारण देर से ही सही बजट आम जन के हक में है। जैसा की पहले से ही अनुमानित था सरकार ने किसानों को कर्ज माफी देकर विपक्षियों की नींद उड़ा दी है। इस कूटनीतिक कदम से वित्तमंत्री ने जहां एक तरफ कृषि के निम्न विकास दर पर परदा डाल दिया है। वहीं एक के बाद एक लगातार आत्महत्या के शिकार होने के कारण, असंतोष से व्याप्त किसानों को अपना मुरीद बना लिया है। सिर्फ कर्ज माफी से भारतीय कृषि क्षेत्र में कितनी हरियाली आयेगी यह तो भविष्य ही बतायेगा, पर फिलहाल जिस तरह से किसानों में खुशी देखी जा रही है उससे आने वाले चुनाव में किसानों का हाथ कांग्रेस के साथ ज़रूर लहराता दिख रहा है। बजट 2008 में मध्यम वर्ग पर भी खासा धयान दिया गया है, एक तरफ आम वेतन भोगी के लिये जहां टैक्स छूट की सीमा १.१० लाख से १.५० लाख कर उनकी आय में बचत की गई है, वहीं छोटी कार, वाइक, इलेक्टरोनिक सामान, दैनिक उपयोग के सामानों को सस्ता कर उनकी जिंदगी विकासशील देश की पटरी पर सरपट दौरा दी है। युवा वर्ग और विद्यार्थियों के लिये उच्च शिक्षा को तवज्जो दी गई है। साथ ही अल्पसंख्यक मुस्लिम वर्ग को ध्यान में रखते हुए मदरसों को भी आधुनिक बनाने की बात कही गई है। अनुसूचित जाति जनजाति क्षेत्र में नवोदय विद्यालय खोलने की योजना है। कागज़ और कलम के मूल्यों को घटाने के साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में कई कारगर कदम उठाया गया है। सर्व शिक्षा अभियान मिड डे मिल के लिये और अधिक पैसे देने की बात कही गई है। स्वास्थ क्षेत्र को नजर मैं रखते हुए दवाइयों पर सर चार्ज कम किया गया है।

अपने चुनावी बजट में वित्त मंत्री महिलाओं को भी नहीं भूले। वेतन भोगी महिलाओं के लिये टैक्स छूट की सीमा १.८० लाख रुपया कर दिया गया है। बुजुर्ग व्यक्तिओं के लिये यह छूट सीमा २.२५ लाख रुपया है।

पिछले कई साल से खाद्य वस्तुओं में लगी आग ने चुल्हे कि लौ कम कर दी थी। दाल, डेयरी उत्पाद, चाय और कोफी जैसे वस्तुओं के दाम कम किये जाने से अब राहत मिलेगा।

समाजिक क्षेत्र, रोज़गार, ग़रीबी उन्मूलन, सिचाई आदि के लिये कोई नई नीति अपनाये बगैर इन क्षेत्रों में रुपये का आवंटन बढा दिया गया है।

इसी तरह चुनाव के बहाने ही सही नेता गन अपने घर की साइनींग करने से फ़ुरसत पाकर कभी कभार यदि जनता जनार्दन की भी सोच लें तो शायद स्थिति कुछ बेहतर हो। खैर, फिलहाल तो यह देखना है कि कुल मिलाकर कितनी बातों पर अमल होगा, कहाँ से पैसा उठाकर कहाँ भरा जायेगा ये तो आने वाला वक्त ही बतायेगा। अभी तो सबकी ज़ुबान एक ही बात कह रही है; काश ये चुनावी भूत हमेशा सवार रहे।

2 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार झा ने कहा…

julie jee,
shubh sneh. chunaav par achhe chutkee lee hai aapne. likhtee rahein, magar ek aagrah hai tippniyon par aap bhee pratikraa awashya dein aur haan doosron ki padhnaa aur tippni karnaa bhee.

बेनामी ने कहा…

Frankly speaking not very exciting, who wants to read what he or she already knows...

Write something different, something original, something from your own heart...

WHEN YOU WRITE, WORDS MUST FLOW LIKE A RIVER...

all the best

the one and only ... ANON