एक जमाना हो गया तुम्हारे साथ अपना वक्त गुजारे , एक दौर हुआ करता था जब तुम्हारे बिना मेरा एक पल भी नही बीतता था। तुम्हें याद है अपनी दोस्तों कि लंबी फ़ेहरिस्त होने के बावजूद मुझपर तुम्हारा ही खुमार था, मैने अपने जीवन के बहुमूल्य समय तुम संग बिता ये। दिन भर की तमाम गतिविधियाँ, सारे जज्वात, सबकुछ, रात की खामोशी मे जब मेरा मन एकाग्रचित होता था , आँखो के सामने सिर्फ तुम होते थे। आत्मा तुम्हारी आगोश मे तुम्हारी हाथों के कोमल स्पर्श से सज रहा होता था। और फिर देखते ही देखते मेरा सर्वस्व तुममे समा जाता था। मेरे एह्सासों को तुम शब्दो मे पिरोते थे। तुम्हारे वजूद के आइने मे अपनी शक्ल देखकर मुझे अपनी खूबियों पर गुमां होता था। तुम्ही तो थे मेरे सपनो के राजदार । तुम मुझे सही गलत का एहसास दिलाते थे। कभी यूँ लगता था तुम्हारा साथ मुझे एक खास मुकाम तक ले जायेगा। पर ये क्या?
मेरे सपने को ज़माने की नज़र लग गई, मेरी जीन्दगी मे एक भुचाल आया जिसने मेरे सपनों के टुकड़े टुकड़े कर दिये। जिस स्याही से मै अपने सपने सजाती थी, जिन रंगो से मै गुलजार हुआ करती थी, उसी के सामने अपने बिखरे सपनो को समेटने की हिम्मत नही बची थी मुझमे। मैने तुमसे भी अपना नाता तोड लिया, तुमसे जुड़ी तमाम यादों को मैने आग के हवाले कर दिया।
5 टिप्पणियां:
julie jee,
shubh sneh, kyaa baat hai itnaa dard itnee baatein, sab theek hai naa ? chaliye isee bahaane se aapne dard baantaa to sahee. aap likahtee rahein.
कलम में इतना दर्द
Aaj pahli baar aapke blog par aaya hoon , pad kar bahut accha laga.
kalam aur apni writing skills ke baaren mein aapne itna accha likha , bahut khushi hui., specially ye lines :
तुम्ही मेरे हम सफर हो।
bahut bahut badhai .
main bhi poems likhta hoon , kabhi mere blog par bhi aayiye.
my Blog : http://poemsofvijay.blogspot.com
regards
vijay
दर्पण झूठ न बोले मे अहाँक दर्द त' बहुत सार गर्भित भ' क' अबैत अछि । एतेक निराशो भेनाई ठीक नै । ओना एक बेर फेर अहाँ भीतरक दर्द के उभारि दैत छी । सॉरी हम मैथिली मे लिखैत छी ई बिना जनने जे अहाँ मैथिली बूझैत छी वा नहि ।
raazpremraaz@gmail.com
वापसी का आपका ये सफर नये कीर्तिमान बनाये यहीं शुभकामनाये...।
बहुत अच्छा लिखा है आपने
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