संचार क्रांति ने लगभग सात अरब आबादी वाले इस दुनियाँ का स्वरूप बिल्कुल छोटा कर दिया है, या यूँ कह लें कि एक छोटे से बक्से ( कम्प्यूटर ) में बंद कर दिया है। इंटरनेट क्रांति का प्रसार इतनी तेजी से हुआ जिसने पूरा परिदृश्य ही बदल दिया। दुनियाँ को मुट्ठी मे करने की चाहत मे कब हम इसके ग़ुलाम हुए खुद को भी पता नहीं चला। मुझ जैसी समाजिक सरोकार रखने वाली लड़की, दुनियाँ को मुट्ठी मे करने के जुनून के पीछे खुद एक कमरे मे सिमट कर रह गई। दुनियाँ मुट्ठी मे आ गई या वो इंटरनेट की दुनियाँ में समा गई कहना थोड़ा मुश्किल है। बात जो भी हो पर इतनी तो सच्चाई है कि अब मैं एक क्लिक भर करने से पूरी दुनियाँ पर नजर रख सकती हूँ। इस एक कमरे की दुनियाँ में मेरी नई-नई उपलब्धि ब्लागिंग है। इस अनोखी दुनियाँ ने मुझे और चकित कर दिया जब मुझे इसके माध्यम से पता चला कि मुझसे आठ दस पायदान उपर के घर मे रहने वाले भैया-भाभी के घर एक नन्ही परी का आगमन हुआ है। संजय पुनीता के घर गुंजी किलकारियों की जानकारी मुझे रवीश जी के पोस्ट (बेटियों का ब्लॉग) से पता चला। मैं स्तब्ध रह गई ब्लॉग के तेजी और प्रसार को देखकर। वाकई क्या कमाल का जगत है। इस आश्चर्य मिश्रित खुशी के बीच मन में कहीं एक टीस सी भी हो रही है। बार बार मन इस सवाल में उलझ कर रह जाता है कि इन्टरनेट ने हमारे संबंधों के दायरों को बढा दिया है या रिश्तों के फासले बढ गये हैं? तय करना मुश्किल हो गया है, कि एक ही घर के दो अलग अलग कमरों के बीच की इस सूचना जाल को उपलब्धि मानें या नज़दीकियों का अंत…………
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11 टिप्पणियां:
वाकई, है तो कमाल का जगत।
स्वागत है जूली जी
अभी तो शुरुआत है जब आपकी चार पोस्ट छप जायेगी, आपको कुछ दिनों तक सपने भी ब्लॉग के ही आया करेंगे, आप चाह कर भी इससे छूट नहीं पायेंगी।
:) :D
एक अनुरोध है अगर वर्ड वेरिफिकेशन हटा दिया जाये तो हमें टिप्पणी करने में आसानी होगी।
एक आभासी सच की दुनिया जिसमें लगता है कि सब कितने करीब हैं,कितने अपने हैं,ब्लॉग की अपनी दुनिया जहां बहुत अपनापा सा लगता है। अपनी कहूं तो ब्लॉग ने कई अच्छे दोस्त दिए और अच्छे सम्पर्क। इसे निगेटिव नहीं मानता।
juliee jee,
achha hai ki aapke dilchasp anubhav hamein bhee romaanchit kar rahe hain, haan ye theek hai ki aaj rishtey apnee nayee paribhaashaa aur maadhyam dhoond rahe hain.
मुझे भी अपने एक दोस्त की नई नौकरी के बारे में ब्लाग के माध्यम से ही पता चला...जिससे हर हफ्ते बात होती थी...उसने इकनोमिक टाइम्स ज्वाइन किया...और ये खबर भड़ास पर थी....गजब है...
मुझे भी अपने एक दोस्त की नई नौकरी के बारे में ब्लाग के माध्यम से ही पता चला...जिससे हर हफ्ते बात होती थी...उसने इकनोमिक टाइम्स ज्वाइन किया...और ये खबर भड़ास पर थी....गजब है...
सागर जी,
वर्ड वेरिफिकेशन हटा दिया गया है। भविष्य में भी ऐसे ही सुझाव देतें रहें। धन्यवाद
देर से ही सही पर शुभकामनाओं के साथ आपका स्वागत!!
आपके मन में कौंधता सवाल जायज और सामयिक है।
इस ब्लॉगजगत ने कम अज़ कम मुझमे बहुत से परिवर्तन लाए हैं!
कभी जब इतिहास लिखा जाएगा तो समय को दो भागों में बाँटा जाएगा , नेट से पहले का काल व उसके बाद का । समाज शास्त्री व मनौवैग्यानिक भी शायद यही करें ।
घुघूती बासूती
vaise halka doubt dikhat hai aapki baaton mein whether aap excessive logging ko ek enjoyable and advantageous cheez maanti hai athwa iske khilaaf hai......
vaise mere hisaab se internet ki duniya nishchay hi kamaal ki duniya hai aur ap samajhdaar ho to bas faayde hi hai.......aapko orkutjoin karne ki bhi salaah dena chahoonga(gar ab tak nahi kiya ho)...
bahut sahi kaha....samajhna mushkil hai
duniya mitthi mein aa gayihai..ya bakse mein qaid ho gayi hai...
very good observation
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